तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या कि तुमने चीख़ों को सचमुच सुना नहीं है क्या तमाम ख़ल्क़े ख़ुदा इस जगह रुके क्यों हैं यहां से आगे कोई रास्ता नहीं है क्या लहू लुहान सभी कर रहे हैं सूरज को किसी को ख़ौफ़ यहां रात का नहीं है क्या"
अखलाक मोहम्म्द खान 'शहरयार'
No comments:
Post a Comment